गोंडवाना की गौरव हमारी मातृ शक्ति गोंडवाना राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती को उनके शहादत दिवस पर शत-शत नमन...सादर सेवा जोहार ...
कहानी रानी दुर्गावती की, जिन्होंने छुड़ा दिए थे अकबर की फौज के छक्के आज है...
- विदर्भ माझा न्युज 24 -
रानी अपने हाथी पर सवार होकर युद्धभूमि में आई, रणभूमि में प्रलय सा मच गया। इस युद्ध में दुर्गावती के मासूम पुत्र वीर नारायण ने अपना जौहर दिखाया। लड़ाई में तीन बार मुगलों की सेना पीछे हटी। लेकिन युद्ध के दौरान रानी के कान के पास तीर लगा और वो घायल हो गईं, वो जबतक संभलती एक दूसरा तीर उनकी गर्दन में घुस गया।
तब मुगल सम्राट अकबर का परचम बुलंद हुआ करता था। वक्त यही कोई 1562 ईस्वी के आस-पास थी। हिन्दुस्तान में मुगलिया सल्तनत की तूती बोलती थी। इसी दौरान मध्य भारत में एक रानी हुआ करती थी। नाम था रानी दुर्गावती। वर्तमान उत्तर प्रदेश के बांदा में इनका शासन हुआ करता था। उसे तब मालवा साम्राज्य कहा जाता था। मुगलों की तलवारों की चमक रानी दुर्गावती को डरा नहीं पाई थी। रानी दुर्गावती बांदा की स्वतंत्र रानी थी। लेकिन इस छोटे से राज्य की आजादी अकबर को खटकती रहती थी। अकबर ने अपने एक जनरल को इस राज्य पर कब्जा करने को कहा। फिर जो युद्ध हुआ वो मालवा और हिन्दुस्तान के इतिहास में दर्ज हो गया। 24 जून 1564 ये वही तारीख थी जब रानी दुर्गावती ने कुर्बानी दी थी।
रानी की बलिदान की कहानी हम आपको बताएं इससे पहले इस त्याग की पृष्ठभूमि हम आपको बताते हैं। सन 1542 ईस्वी में रानी दुर्गावती की राजगोंड वंश के राजा संग्राम शाह के बेटे दलपत शाह से हुई। 1545 ईस्वी में रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया, उनका नाम रखा गया वीर नारायण। जब वीर नारायण मात्र 5 साल के थे भी दलपत शाह इस दुनिया से चल बसे। हालात को देखते हुए रानी दुर्गावती ने गोंड साम्राज्य का संचालन खुद अपने हाथ में लिया। इस दौरान दुर्गावती को दीवान बेवहर अधर सिम्हा और मंत्री मन ठाकुर से मदद मिली। रानी अपनी राजधानी को सिंगूरगढ़ से चौरागढ़ ले आई। ये रणनीतिक दृष्टि से लिया गया फैसला था। चौरागढ़ सतपुड़ा की पहाड़ियों में स्थित था।
इधर अफगानी शासक शेरशाह की मृत्यु के बाद सुजात खान ने मालवा पर कब्जा जमा लिया। 1556 में सुजात खान का बेटा बाज बहादुर मालवा पर राज कर रहा था। सत्ता पर काबिज होते ही बाज बहादुर ने रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला कर दिया। लेकिन इस युद्ध में दुर्गावती ने बाज बहादुर को धूल चटा दी। उसकी सेना को भारी नुकसान हुआ। इस जीत के साथ ही दुर्गावती की चर्चा हिन्दुस्तान का हर जागरुक शहरी करने लगा था। दुर्गावती की तारीफ की ये खबरें मुगल सल्तनत तक भी पहुंची, जो अबतक शेरशाह से हिन्दुस्तान की गद्दी छिनकर उसपर खुद काबिज हो चुके थे। 1562 आते-आते अकबर ने मालवा के शासक बाज बहादुर को हरा दिया और मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। इस तरह से मुगल राज्य की सीमा गोंड सीमा से मिल गई। दोनों राज्यों के बीच टकराव लाजिमी था।
इस दौरान अकबर का एक जनरल था ख्वाजा अब्दुल माजिद असफ खान। असफ खान महात्वाकांक्षी जनरल था। उसने रीवा के राजा रामचंद्र को हराकर वह अकबर के सामने अपनी काबिलियत साबित कर चुका था। गोंड साम्राज्य की समृद्धि उसके आंखों में खटक रही थी। असफ खान ने अकबर की शह पर गोंड साम्राज्य पर हमले का ऐलान कर दिया। रानी पद्मावती को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने पूरी शक्ति से इस हिमाकत का जवाब देने की तैयारी की। हालांकि उनके दीवान ने उन्हें मुगलों की ताकत से अवगत कराया। लेकिन रानी ने तय किया कि मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से अच्छा है इज्जत के साथ मौत को गले लगाया जाए।
एक तरफ तत्कालीन दुनिया में जंग के लिए प्रसिद्ध मुगलों की सेना थी, जिसके पास बारुद और असलहे थे तो दूसरी तरफ थी छोटे से राज्य गोंड की सेना। ये फौज साजो-सामान से उतनी संपन्न तो नहीं थी, लेकिन उनके जज्बे का कोई जोड़ नहीं था। जून 1564 में दोनों के पक्षों के बीच गौर और नर्मदा नदियों की घाटी के बीच लड़ाई शुरू हुई। शुरुआती लड़ाई में रानी दुर्गावती को झटका लगा, उनका फौजदार अर्जुन दास मारा गया। इसके बाद रानी दुर्गावती ने खुद मोर्चा संभाला। दुश्मन जैसे ही घाटी वाले इलाके में घुसा, दुर्गावती की फौज ने उसपर हमला कर दिया। बड़ा भयंकर युद्ध हुआ, दोनों तरफ से लोग मारे गये, लेकिन रानी ने मुगलों को शिकस्त दी, उन्हें घाटी से बाहर खदेड़ दिया।
इसी वक्त रानी ने अपने सैन्य रणनीतिकारों के साथ मशविरा किया, वह दुश्मन पर रात को हमला करना चाहती थी, लेकिन उनके जनरलों ने इस सुझाव को नहीं माना। अगली सुबह असफ खान ने मुगलों की तोपें मंगवा ली थी। दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, असद खान एक हार के बाद चिढ़ा हुआ था, रानी अपने हाथी पर सवार होकर युद्धभूमि में आई, रणभूमि में प्रलय सा मच गया। इस युद्ध में दुर्गावती के मासूम पुत्र वीर नारायण ने अपना जौहर दिखाया। लड़ाई में तीन बार मुगलों की सेना पीछे हटी। लेकिन युद्ध के दौरान रानी के कान के पास तीर लगा और वो घायल हो गईं, वो जबतक संभलती एक दूसरा तीर उनकी गर्दन में घुस गया। वो बेहोश हो गईं। जब उनकी बेहोशी टूटी तो उन्हें लगने लगा कि हार अब तय है। उनके महावत ने उन्हें युद्ध क्षेत्र से बाहर निकलकर सुरक्षित स्थान पर जाने को कहा। लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। उन्होंने अपनी कटार निकाली और अपनी जान दे दी। ये दिन था 24 जून 1564। इस दिन आज भी बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है।